Saturday, May 10, 2014

हुआ फिर से ये सवेरा....



हुआ फिर से ये सवेरा,
फिर जीवन यूँ ही मुश्किलों से घिरा...
दिनभर क्या होगा,
कैसे कटेगा दिन ये सारा .....
यही सोच कर बार बार,
घटता जीवन हमारा ...
उठ कर लगे काम काज में,
की कोशिश खुश रहने की हर हाल में,
बटोरने को खुशियाँ, बीता दिया दिन सारा का सारा ..
शाम हुई, घर लौंटने की की तैयारी,
फिर बस का वाही सफ़र,
और पहुंचा घर मैं थका हारा ....
आई याद सुहानी तुम्हारी,
जब देखा दरवाजे पर लटका ताला,
खोल उसे जब घर में आया,
बदल कर कपडे पंखा चलाया,
तब जाकर दूर हुआ पसीना सारा...
फिर शुरू हुई यादों की दूसरी पारी,
एक में वो जीती तो दूसरी में मै हारा..
जीत उसकी तो भी याद तुम्हारी आई,
जीत मेरी तो भी याद तुम्हारी आई,
जब देखा पास अपने तो में तो था वाही,
पर पास तुम न आई,
तब जाकर परिणाम ये आया,
जीतें यादें या मै जीतूँ,
हर हाल में तो मै ही हारा..
हर हाल में तो मै ही हारा..
थोड़ी देर मिली रहत उस वीराने से,
कुछ खाया दूसरे के मन से और कुछ अपने मन से,
देख लैपटॉप को हुआ कुछ टाइम पास,
फिर भी बच गया बहुत सारा टाइम मेरे पास,
जब सुनी फ़ोन पर आवाज तुम्हारी,
लगा जीता जग मै सारा का सारा....
रात हुई फिर से एक बार,
था चारो तरफ अन्धकार ही अन्धकार,
और सोया हुआ था संसार सारा...
मै जागा था तेरे इंतजार में,
शायद दूरी कह लो या कह लो, था तेरे प्यार में,
ये हाल न था पहले मेरा,
ये हुआ केवल दो ही माह में,
कहे कोई इसे मेरा पागलपन,
या कह ले कोई इसे मेरा दीवानापन,
पर हकीकत में तो हैं,
ये प्यार हमारा...
ये प्यार हमारा...
पता नहीं कब लगी ये आँख,
और हुआ फिर से ये सवेरा...
हुआ फिर से हुआ सवेरा ....

No comments:

Post a Comment