शब्द की कोई पहचान नहीं हैं
पर हर एक पहचान के लिये
शब्द जरुर हैं
शब्द ही है जो तारीफ
सुनवाता है
शब्द ही है जो अपशब्द
सुनवाता है
शब्द से बढता मान है
शब्द ही कराता अपमान है
शब्द ही है नाम है और खाभी
शब्द ही होता गुमनाम है
क्यों बंधा है शब्दों के
बंधन से इंसान
क्योंकि जब बोलता है तो वो
ही बांटी उसकी पहचान
खुद का कोई मोल नहीं रहता,
और महान इंसान के मुह
से निकला शब्द अनमोल ही रहता
कोई सीमा कोई मर्यादा तय
नहीं कर पाया कोई शब्द की
पर देखो रब का खेल उसी एक
शब्द से तय कर दे सीमा सब की.
उसी एक शब्द से तय कर दे
सीमा सब की.............