Saturday, December 22, 2012

शब्द


शब्द की कोई पहचान नहीं हैं
पर हर एक पहचान के लिये शब्द जरुर हैं
शब्द ही है जो तारीफ सुनवाता है
शब्द ही है जो अपशब्द सुनवाता है
शब्द से बढता मान है
शब्द ही कराता अपमान है
शब्द ही है नाम है और खाभी शब्द ही होता गुमनाम है
क्यों बंधा है शब्दों के बंधन से इंसान
क्योंकि जब बोलता है तो वो ही बांटी उसकी पहचान
खुद का कोई मोल नहीं रहता,
और महान इंसान के मुह से  निकला शब्द अनमोल ही रहता
कोई सीमा कोई मर्यादा तय नहीं कर पाया कोई शब्द की
पर देखो रब का खेल उसी एक शब्द से तय कर दे सीमा सब की.
उसी एक शब्द से तय कर दे सीमा सब की.............

अहसास


अहसास भी बड़ा अजीब है
होता बड़ा करीब है
हो भले ही हजारों सुख करीब हमारे
फिर भी पिछले दुखों का अहसास जरुर होता अंदर हमारे
चाहे हो दुखो का पहाड़ हजार
पर पिछले सुखों का अहसास और करार
साथ ही आने वाले सुखो का भी  होता है अहसाह
साथ रहने का अहसास तो बिछड़ने का भी अहसाह
आखिर क्या है ये अहसास
जब गहराइयों में उतर कर देखा तो पाया
कि जैसे जीवन जीने के लिए साँस है
कुछ पाने के लिये एक आस है
कृष्ण के लिये रास है और कह दो अगर तो
अहसास कुछ नहीं ये तो पाने कि एक प्यास है और खो देने का आभास है......

खुशियाँ

पता नहीं जिंदगी में कब वो मुकाम आये
जहाँ पहुँच कर देखू और सब मुस्कुराते हुए पाए जाये
बाँट पाया जितनी खुशी, मैंने बाँट दी,
देखना अब है यारों
कि कितनी खुशियाँ किसने बटोर ली
बिना भेदभाव बांटी थी मैंने ततो सबको
देंखुंगा लौट कर तो पता चलेगा
कि कौन खुशियाँ बटोर कर भी खुश नहीं है
और कोई मुझे खुशियाँ बांटते देखकर ही खुश है
कोई मुझे खुशियाँ बांटते देखकर ही खुश है

तक़दीर


तक़दीर का खेल भी बड़ा अजीब होता है
कोई अपना तो कोई बेगाना  होता है
एक पल में मिलती हैं खुशियाँ हजार
दूसरे ही पल दुखों का सागर होता है
ऐसा  नहीं की हार के आलावा कुछ नहीं है इस सागर के पार
सागर पार करना ही जीत है मेरे यार
दुःख सुख का क्या है,
आते है जाते है जीवन में बार बार
हालत बदलते है बार बार
नहीं बदलता अगर कुछ तो वो है सिर्फ प्यार सिर्फ प्यार ...............